Book Title: Pradyumn Haran
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 26
________________ विमान में बैठी रुक्मिणी व्याकुल हो उठी। मुनिराज ! प्रद्युम्न नहीं जानता कि वह अपने ) ठीक है। जाताहूं। पिता से ही युद्ध कर रहाहै। कृपया इसे रोकिए नहीं तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा। नारद जी विमान से उतर कर नीचे आष्ट और पिता-पुत्र युद्ध को बंद कराया हे कृष्ण। यह युवकही तुम्हारा पुत्र प्रद्युम्न है। पिता-पुत्र में युद्ध कैसा? क्या ?? प्रद्युम्न श्रीकृठण के चरणों में | हेतात ! मुझे क्षमा करें। मुझसे बड़ा अपराध होगया।मैं सभी गिर पड़ा! श्रीकृष्ण ने बड़े स्नेह सैनिकों को अभी जीवन दान देताहूं। आकाश से विमान को से उसे अंक में भर उतार कर माताजी को लाता। वत्स! मुझे तुम्हारी लिया। वीरता और विद्याबल पर गर्व है। माधव !विमान में रुक्मिणी जी के साथ दुर्योधन सुता उदधिकुमारी भी है। 24

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