Book Title: Pradyumn Haran
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 22
________________ 'बचाओ बचाओ पकड़ो पकड़ो अरे यह तो कोई मायावी है, आकाश में उड़ गया। Bec कैसे हो सकता है!!! हा, हा, हा, लो देखो, ऐसे मैं तुम्हारी राजकुमारी को हर कर आकाश मार्ग से जाता हूं। किसी में सामर्थ्य हो तो आए और इन्हें छुड़ाले । बहुत सुंदर नगरी जान पड़ती है। आपकी • आज्ञा हो तो मैं नगरी को देख आऊं A A प्रद्युम्न कुमार का विमान द्वारिकापुरी के समीप पहुंचा नारद जी ने प्रद्युम्न को सचेत किया बेटा प्रद्युम्न! ये ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं, ये भव्य मन्दिर देख रहे यह यादवों की नगरी है बेटा! यहां तुमने कोई कौतुक किया तो वे बहुत उत्पात हो नहीं है तुम्हारे पिता श्री कृष्ण की राजधानी द्वारिकापुरी मचाएंगे। TOROD Saannal na दैत्य है 20 भील रूपी प्रद्युम्न कुमार उदधि कुमारी को लेकर आकाश में खड़े अपने विमान में जा पहुंचा। हे तात! मेरी रक्षा कीजिए। यह भील मुझे जबरन ले आया है। मेरे पिता ने मुझे महारानी रुक्मिणी के पुत्र को देना विचाराथा इसीलिए मैं द्वार जा रही थी, कृपया। इसके चंगुल से मुझे मुक्त कराइए। बेटी। विसाय 'मत कर। शोक त्याग। यह भील नहीं है। तेरा पति रुक्मिणी का पुत्र प्रद्युम्न है। हम लोग भी द्वारिका ही चल रहे हैं। नारद जी ने उदधिकुमारी को धीरज बंधाया। भील का रूप त्याग | प्रद्युम्न अपने असली रूप में आ गया। उदधिकुमारी प्रसन्न हो उठी।। नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा ! मैं गया और आया

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