Book Title: Pradyumn Haran
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 23
________________ प्रद्युम्न कुमार ने एक युवक को एक घोड़े पर चदे देवा, विद्याबलसे वह जान गया कि युवक सत्यभामा सुत भानुकुमारथा । प्रद्युम्नने विद्याद्वारा एक सुंदर घोड़ाबनाया और वृद्वका रूप कर भानुकुमार के पास पहुंचा। हे वृन्द ! क्यायह रहा है तो। और मैं इसेबेचना) घोड़ा तुम्हारा है? चाहता हूं। घोड़ा देखने में तो बदियालगता है। किंतु खरीदने. से पहले मैं इसकी परीक्षालूंगा अवश्य। (आइ, उई, मर गया । भानुकुमार घोड़े परसवार होगया और उसकी चाल देखने लगा अचानक घोड़ासरपट दौड़ा। भानकमारको जमीन पर पटक कर घोड़ा वापस प्रद्युम्न के पास आ गया प्रद्युम्न ने द्वारिका में बहुतसे कौतुक किये। अहो भाग्य! कृपया इच्छाकार आसन पर विसजें। नगर के मध्य में एक सुन्दर महल था। विद्याबल से प्रद्युम्न को पता चल गया कि वह महल महारानी रुक्मिणीकाथा क्षुल्लक का रूप धारण कर वह महलमें पहुंचा। O OESDehne हेमाता! तुझे भव-भव में दर्शन विशुद्धि प्राप्त हो। Brope रुक्मिणी जिन भल भी उसने क्षुल्लकजीको । सम्मान के साथ आसन पर बैठाया। 21

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