Book Title: Pradyumn Haran
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ प्रद्युम्न कुमार ने विद्या के प्रभाव से एक विशाल सेना बनाली, भीषण युद्ध हुआ। कालसंवर के बहुत सैनिक मार गए। आरिवर प्रद्युम्न कुमार ने कालसंवर को नागपाश में बांध लिया। अरे कोई है। मुझे इस नागपाश के बंधन से मुक्त कराओ। पिताजी, आपके सैनिक तो भागे जा तभी आकाश मार्ग से नारदजी वहां आ पहुचनालायक अरे! कालसंवर! प्रद्युम्नने। जिसे तुम्हारी यहदशा मैंने पाला। किसने की? युवराज का पद सदिया। उसी बेटेने महाराज तुमने ऐसा क्यों किया, प्रद्युम्न? मुनिवर, दुश्चरित्रा मां के मिथ्या आरोप पर विश्वास कर इन्होंने मुझे मार डालने कीकोशिश की। मैंने उसका प्रतिरोध किया है, बस। प्रद्युम्न कुमार नेकनकमाला कादुश्चरित्र नारद को बताया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32