Book Title: Pradyumn Haran
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 12
________________ सक्मिणीका पुत्र पांच दिन का हो गया। एक दैत्य आकाशमार्ग से गुजयरुक्मिणी केमहलके ऊपर पहुंचतेही उसका विमान अचानक रुक गया रुक्मिणी अपने पुत्र को लिए प्रसुति गृह में सो रही थी। मेरा विमान यहां अपने आपक्योंरुक गया। अवश्य हीयंहा कोई जिन मंदिर है। या फिर मेराकोई शत्रु। an दैत्यने अवधिज्ञान से जान लिया कि रुक्मिणी कानवजात पुत्र उसका पूर्वजन्म का शत्रु है। दैत्यरूक्मिणीसुतकाहरण कर आकाशमार्ग से चल दिया (रेधूर्त तू ही पूर्वजन्मकाराजा मधुहै। मेरा शत्रु! तुने मेरी पत्नीका हरण किया था में तुझे जीवित नहीं छोडूंगा। वह शिशुको तक्षक पर्वत पर ले गया। वहां उसने एक बहुत बड़ी चट्टान देखी हायह ठीक है। इसे इस बावनहाथ की चट्टान के नीचे दबा दूं। यह • यहीं तड़प-तड़प करमर जाएगा। दैल्यशिशुको चट्टान के नीचे दबा कर चला गया। बाद में....

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