Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala View full book textPage 9
________________ प्राचीन जैन इतिहास सग्रह में सदा निरत रहते थे। उग्र भोग इक्ष्वाकु और राजन् कुल के तथा सेठ साहुकारों के १६००० मनुष्य पार्श्वनाथ स्वामी के पवित्र चरण कमलों में दीक्षान्वित हुए थे ! आपके पास दीक्षित हुई ३८००० साध्वियाँ महिला समाज को सदुपदेश सुनाकर धर्म का उज्ज्वल मार्ग प्रदर्शित करती थी। जैन तीर्थंकरों में श्री पार्श्वनाथ स्वामी का नाम ही खूब प्रख्यात है। और यंत्र तथा मंत्र भी पार्श्वनाथ स्वामी के नाम से अधिक हैं। अर्वाचीन समय में भी अधिकतर जैनेतरों को पार्श्वनाथ स्वामी का ही परिचय है। पार्श्वनाथ स्वामी ने विहार विशेषतया काशी, कौशल, अंग, बंग, कलिंग, जंगल और कोनाल आदि प्रान्तों में किया था। उपरोक्त प्रान्तों अंग, बंग, मगध और कलिंग देश में आपने विशेष उपदेश देकर जैन धर्म का खूब अभ्युदय किया था । इसका यह प्रमाण है कि कलिंग देश के अंतर्गत उदयगिरि पहाड़ी की हांसीपुर गुफा में आपका जीवनचरित शिलालेख के रूप में अब तक भी विद्यमान है। यह पहाड़ भी कुमार तीर्थ के नाम से आज लों प्रख्यात है। आपकी शिष्य मण्डली ने भी उसी प्रान्त में अधिक विहार किया होगा ऐसा मालूम होता है। भगवान् पार्श्वनाथ के निर्वाण के बाद फिर यज्ञवादियों का होंसला बढ़ने लगा, और धीरे धीरे उन्होंने कई राजा महाराजों पर भी अपना प्रभाव डाला। इधर पार्श्वनाथ भगवान के पट्ट पर उनके गणधर शुभदत्ताचार्य नियुक्त हुए । आपने अपने आशा वृति साधुओं को प्रत्येक प्रान्तों में भेज भेज कर अहिंसा परमोधर्मः का जोर शोर से प्रचार किया। इस पवित्र कार्य में अपने आशाPage Navigation
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