Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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पाटलीपुर का इतिहास समझ आत्मा को क्षीणक भावी मानी है। पूर्वोक्त कारणों से वेदान्तियों ने जैन और बोद्ध को एक ही समझ के कई जगह जैनों को बोध ही लिख मारा है बुद्ध का समय ठीक केशीश्रमणाचार्य का शासन का ही समय था भगवान महावीर के समकालीन बुद्ध हुआ है महावीर की आयुष्य ७२ वर्ष की जब बुद्ध की आयुष्य ८० वर्ष की थी। महाबीर से दो वर्ष पहले बुद्ध का जन्म हुआ और महावीर के निर्वाण के बाद ६ वर्ष पीछे बुद्ध का निर्वाण हुआ भगवान महावीर का और बुद्ध का यज्ञ हिंसा के सामने विरोध और अहिंसा प्रचार का प्रयत्न बाह्य दृष्टि से मिलता जुलता ही था इसलिये वेदान्ति लोग दोनों को
अपने प्रतिपक्षी ही समझते थे खैर। - केशी श्रमणाचार्य ने अपने आज्ञावर्ती मुनियों को देश प्रदेश में भेज भेज कर ब्राह्मणों बोद्धों के चंगुल से अनेक प्राणियों को बचा कर जैनधर्मी बनाया और शिष्यों को अन्योन्य प्रान्त में भेज कर आपने स्वयं अंग, बंग और मगध देश में रह कर जैन धर्म की उन्नति करने में अटूट परिश्रम किया। तथापि प्रकृति एक महापुरुष की और कमी अनुभव करती थी। प्रतीक्षा एक ऐसे व्यक्ति की थी जो शान्ति का साम्राज्य स्थापित कर धार्मिक क्षेत्र में मची हुई क्रांति को मिटा दे। उस समय की दशा भी विक्षिप्त थी। पारस्परिक प्रतिद्वंदता का जमाना द्वेष को फैला रहा था । — एक ओर वेदान्ति लोग यज्ञ आदि में पशु हत्या पर तुले हुए थे तो दूसरी ओर बुद्धलोग अहिंसा धर्म का उपदेश देते हुए भी मांस मदिरा के प्रयोग से बचे हुए नहीं थे।