Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 20
________________ १९ पाटलीपुर का इतिहास का कट्टर विरोधी था मरणोन्मुख होते हुए ब्राह्मण धर्म को -इसी नरेश ने जीवन प्रदान किया था । तथापि जैन और बोद्धों का जोर कम नहीं हुआ । शायद पिछली अवस्था में जैन मुनियों के समागम से उसने जैनधर्म स्वीकार कर लिया हो और जैन धर्म का प्रचार किया हो इतिहास से ऐसा मालूम होता है । इतिहास से विदित होता है कि मगध को गद्दी पर नंद वंश के नौ राजाओं ने राज्य किया है । वे नंदवंशी सब राजा जैनी थे इसका प्रमाण देखियेSmith's Early History of India Page 114 में और डाक्टर शेषगिरिराव ए. ए. एण्ड ए आदि मगध के नंद राजाओं को जैन लिखते हैं क्योंकि जैनधर्मी होने से वे आदीश्वर भगवान की मूर्ति को कलिङ्ग से अपनी राजधानी में ले गये थे | देखिये South India Jainism Vol. II Page 82. महाराजा खारवेल के शिलालेख से स्पष्ट प्रकट होता है कि नंद वंशीय नृप जैनी थे । क्योंकि उन्होंने जैन मूर्ति को बलजोरी ले जा कर मगध देश में स्थापित की थी । इस से यही सिद्ध होता है कि यह घराना जैनधर्मोपासक था । ये राजा सेवा तथा दर्शन आदि के लिये ही जैन मूर्ति लालाकर मन्दिर बनवाते होंगे। जैन इतिहास वेत्ताओंने तो विश्वासपूर्वक लिखा है कि नंदवंशीय राजा जैनी थे । तथा इतिहास से भी यही प्रकट होता है। सूर्य उदय होकर मध्याह्न तक प्रज्वलित होकर जिस प्रकार संध्या के समय अस्त हो जाता है तदनुरूप इस पवित्र भूमिपर कई राज्य उदय होकर अस्त भी हो गये । इसी प्रकार की दशा पाटलीपुत्र नगर की हुई । नंद वंश के प्रताप का सूर्य अंतिम

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