Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
View full book text
________________
पाटलीपुर का इतिहास उल्लेख पूर्वाचार्यों के रचित . ग्रन्थों में, जहाँ राजा सम्प्रति का जीवन लिखा हुआ है, विस्तारपूर्वक उपलब्ध होता है। इन बातों का उल्लेख अनेक प्राचार्यों ने भिन्न भिन्न प्रन्थों में स्थान २ पर किया है। उनमें से नीचे कुछ श्लोक उध्धृत कर पाठकों को मैं यह बताना चाहता हूँ कि राजा सम्प्रति ने अनार्य देशों में जैनधर्म को प्रसारित करने को क्या क्या उपाय किये ? श्राशा है पाठकगण इन श्लोकों का ध्यानपूर्वक पठन कर ऐतिहासिक बातों से पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।
प्रवर्तयामि साधूनां । सुविहार विधित्सया । अन्ध्राद्यनार्यदेशेषु । यति वेषधारान् भटान् ।।१५८।। येन व्रत समाचारः । वासना वासितो जनः । अनार्योत्पन्नदानादौ । साधूनां वर्तते सुखम् ॥१५६।। चिन्तयित्वत्थमाकार्यानार्यानेवमभाषत । भो यथा मद्भटायुष्मान् याचन्ते मामकं करम् ॥१६०॥ तथा दद्यात तेऽप्यूचुः । कुर्म एवं ततोनृपः । तुष्टस्तान् प्रेषयामास । स्वस्थानं स्वभटानपि।।१६१।। सत्तपस्वि समाचार । दक्षान् कृत्व यथाविधि'। प्राहिणोन्नपतिस्तत्र । बहूँस्तद्वेषधारिणः ॥१६२।। ते च तत्र गतास्तेषां । वदन्त्येवं पुरःस्थिताः। अस्माकमन्नपानादि । प्रदेयं विधिनामुना ॥१६॥ द्वि चत्वारि शता दोषौविशुद्धंयद्भबेषहि । तथैव कल्पतेऽस्माकं वस्त्रपात्रादि किञ्चन ॥१६४॥