Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
३६. आज्ञा से जैन साधुओं के झुंड के मुंड अनार्यदेश में जाने लगे। मुनि लोगों की अभिलाषा कई दिनों से पूर्ण हुई। वे बड़े जोरों से आगे इस प्रकार बढ़े कि जिस प्रकार एक व्यापारी
अपने लाभ के लिये उत्सुकतापूर्वक दुखों की परवाह न करता हुआ बढ़ता है । कुछ मुनि अनार्यदेश से लौटकर आते थे और
आचार्यश्री को वहाँ की सब बातें सुनाया करते थे। आये हुए साधुओं ने कहा कि हे प्रभो! अनार्य देश के लोग यहाँ के लोगों से भी अधिक श्रद्धा तथा भक्ति प्रकट करते हैं। ___इस प्रयत्न से इतनी सफलता मिली कि अर्बिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कीस्तान, ईरान, युनान, मिश्र, तिब्बत, चीन, ब्रह्मा,
आसाम, लंका, आफ्रिका और अमेरिका तक के प्रदेशों में जैन धर्म का प्रचार हो गया । उस समय जगह जगह पर कई मंदिर निर्माण कराए गये । उस समय तक म० ईसा व महमूद पेगम्बर का तो जन्म तक भी नहीं हुआ था। क्या आर्य और क्या अनार्य सब लोग मूर्ति का पूजन किया करते थे । कारण यह था कि वेदान्तियों में भी मूर्ति पूजा का विधान था, महात्मा बुद्ध की विशेष मूर्तियाँ सम्राट अशोक से स्थापित हुई। जैनी तो अनादि से मूर्ति पूजा करते आए हैं। अतएव सारा संसार मूर्ति पूजक था। यूरोप में तो विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में भी मूर्तिपूजा विद्यमान थी । आष्ट्रेलिया और अमेरिका में तो भूमि के खोदने पर अब भी कई मूर्तियाँ निकल रही हैं। वे निकली हुई सब मूर्तियों जैनों की हैं । मक्का में भी एक जैन मन्दिर विद्यमान था । पेगम्बर महमूद के जन्म के पश्चात् वे मूर्तियाँ महुआ शहर ( मधुमति ) में पहुंचाई गई थीं। इससे सिद्ध होता है कि