Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
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विदेशों में जैनधर्म का प्रचार किया उसी तरह राजा सम्प्रति से: भी आशा की जाती है कि विदेशों में जैनधर्म का प्रचार करने के हेतु उपदेशक भेजकर ऐसा वातावरण उत्पन्न करदे कि अनार्य देश के निवासी साधुओं की ओर सहानुभूति प्रदर्शित करें तथा उनके आचार व्यवहार आदि में किसी भी प्रकार की बाधा न. पहुँचाते हुए उपदेश सुनने की ओर अभिरुचि रक्खें । इस प्रकार से जैन मुनियों को विदेश में विहार करने का अवसर भी प्राप्त हो सकेगा ।
यह प्रस्ताव जिस आशा से रक्खा गया था उसी तरह के उत्साह से सर्व सम्मति से स्वीकृत हुआ । राजा सम्प्रति ने भरी सभा में सब के समक्ष हाथ जोड़ कर यह प्रतिज्ञा की कि मैं उपस्थित चतुर्विध श्री संघ को विश्वास दिलाता हूँ कि मैं जैनधर्म के प्रचार के उद्योग में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रक्खूंगा तथा विदेश के प्रचार विभाग के लिये विशेष आर्थिक सहायता दूँगा । सभापति के भाषण का प्रभाव बहुत पड़ा और सारे जैन मुनि भी प्रचार के हित कमर कस कर तैयार होने का वचन देने लगे । इस प्रकार सभा अपने कार्य को सफलतापूर्वक सम्पादन कर "वीर भगवान की जय" की तुमुल ध्वनि से आकाश को जाती हुई विसर्जित हुई ।
इस सभा के पश्चात् राजा सम्प्रति सदा इसी विचार में व्यस्त रहता था कि जैनधर्म के प्रचारकों को प्रवास में भेजकर किस प्रकार शीघ्रातिशीघ्र प्रचार का कार्य किया जाय ? उस अनार्य क्षेत्र को मुनि विहार के योग्य करने के लिये उसने बहु संख्यक कार्यकर्त्ताओं को चारों दिशाओं में भेज दिया। इन बातों का
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