Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 27
________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह २६ चढ़ाई की। उस युद्ध में कलिङ्ग के कई योद्धा जान से हाथ धो बैठे। यह देख कर अशोक का हृदय दया से द्रविभूत हो कर तिलमिला उठा । युद्ध को पापमयी रक्त रंजित लीला को देख कर सहसा उसका विचार परिवर्तित हो गया । कलिङ्ग देश को जीत कर जब वह मगध देश में आया तो उसने आत्म प्रेरणा से यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि जीवन पर्यन्त कभी भी मैं युद्ध नहीं करूँगा । जिस समय अशोक यह प्रतिज्ञा कर रहा था एक बौद्ध भिक्षु भो राजा के पास पहुँच गया और राजा की ऐसी दशा देख कर उसने अहिंसा का महत्व बता उसे अपने पंथ में मूँड लिया । वह बौद्ध भिक्षु तो नहीं बना पर अहिंसा के प्रेम में ऐसा रंगा हुआ था कि उसने चट बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। जैनों की अनुपस्थिति में यदि उसने इस मत को ग्रहण कर लिया हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं थी । राजा अशोक श्रोजस्वी एवं पूर्ण मनस्वी था । उसने बौद्ध धर्म का प्रचार खूब जोरों से किया । देश की गली गली में बौद्ध धर्म का डंका बजने लगा तथा झुण्ड के झुण्ड आ कर बौद्ध धर्म की शरण ताकने लगे । इसी की धार्मिक आज्ञाओं के अध्ययन से पता पड़ता है। कि वह भारत का सम्राट् था । लोकोपकारी कार्यों को करना उसने अपना धार्मिक कर्त्तव्य ठहराया था । उसने ठौर ठौर सार्वजनिक मार्ग पर आवश्यकतानुसार कुए, तालाब, बाग- बगीचे, सड़कें और पथिकाश्रम बनाए । बौद्ध श्रमणों के हित उसने जगह जगह संघाराम (मठ) बनवाए तथा बुद्धको मूर्तियों का तो उसने तांता ही लगा दिया। पहाड़ों के अन्दर श्रमण समाज

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