Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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पाटलीपुर का इतिहास
विस्तृत हो गया था। बिन्दुसार राजा शांति प्रिय एवं संतोषी था। इसका राज्य काल निर्विघ्नतया बीत रहा था। इसके शासन के समय ऐसी कोई भी महत्व की घटना नहीं घटित हुई जिसका कि इस जगह विशेष उल्लेख किया जाय ।
राजा अपनी प्रजा को पुत्र तुल्य समझता था तथा प्रजा भी अपने राजा की पूर्ण भक्त थी। जैन धर्म का एक उद्देश्य शांति भी है जिसका कि साम्राज्य बिन्दुसार के समय में था। इसने कई यात्रायें की। कुमारी कुमार तीर्थ पर तो यह राजा निवृत भाव में कई बार संलग्न रहता था। लोकोपकारी कार्यों में राजा की अधिक रुचि थी। प्रजा के सुभीते के लिए जगह जगह कुए, तालाब और बगीचे बनाने में इसने विपुल सम्पत्ति व्यय की। अनेक विद्यालय एवं जिनालय इसके हाथ से प्रतिष्ठित हुए। कृषि, व्यापार और शिल्प की उन्नति के लिये ही बिन्दुसार ने विशेष प्रयत्न किया था। इस प्रकार इसने अपना जीवन परम सुख से व्यतीत किया। .. महाराजा बिन्दुसार के पश्चात् मगध देश का राज्य मुकुट अशोक के शिर पर शोभित हुआ। अशोक भी अपने पिता व पितामह की तरह शूरवीर एवं प्रतापी योद्धा था। यह राजा भी जैनी ही था। महाराजा अशोक की तक्षशिला की प्रशस्तियों और आज्ञाओं में भगवान पार्श्वनाथ स्वामी की स्तुतियों पाई जाती हैं। डा० लार्ड कनिङ्ग होमने अपनी पुस्तकों में इस बात का उल्लेख किया है कि राजा अशोक पहले तो जैनी था पर बाद में उसने बौद्ध धर्म कब स्वीकार किया इस विषय में विद्वानों का यह मत है कि ई. स. २६२ पूर्व में अशोक ने कलिङ्ग देश पर