Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
२८ था अतएव उसने मरते हुए ब्राह्मण धर्म में फिर से जान डाली । इसने चाहा कि अश्वमेध यज्ञ कर चक्रवर्ती की उपाधि उपार्जन करूँ पर महामेघवहान चक्रवर्ती महाराजा खारवेलने मगध देश पर आक्रमण कर बृहस्पति के मदको मर्दन कर उसे इस प्रकारसे पराजित किया कि उसके पास से सारा धन, जो वह कलिङ्ग देश में डकैती करके लाया था, तथा पूर्व नन्दराजा स्वर्णमय जिन मूर्ति जो कुमार गिरि तीर्थ से उठा लाया था, ले लिया। वारवेल ने पूरा बदला ले लिया। खारवेल ने मगध से वह धन और मूर्ति फिर जहाँ की तहाँ कलिङ्ग देश में पहुँचा दी । अब मगध देश भी कलिङ्ग देश के अधिकार में आ गया । ____ उधर उज्जैन नगरी में महाराजा कुनाल का पुत्र सम्प्रति राज्य करने लगा। यह सम्प्रति राजा पूर्व भवमें एक भिक्षुक का जीव था। इस भिक्षुक ने आचार्य श्री सुहस्तीसूरी के पास दीक्षा ग्रहण की थी जिसका विस्तृत वर्णन जैन जाति महोदय में लिखा गया है, जब यह भिक्षुक जैनमुनि हो गया और रात्रि में अतिसार के रोग से मर कर राजा कुनाल के घर उत्पन्न हुआ यही सम्प्रति उज्जैन नगरी का राजा हुआ । उस समय आचार्य श्री सुहस्तीसूरी उज्जैन में भगवान महावीर स्वामी की रथयात्रा के महोत्सव पर
आए थे। रथयात्रा की सवारी नगर के आम रास्तोंपर धूमधाम के निकल रही थी। आचार्य श्री के शिष्य भी इसी सवारी के साथ चल रहे थे।
पहुँचते पहुँचते सवारी राजमहलों के निकट पहुँची । झरोखे में बैठा हुआ सम्प्रति राजा टकटकी लगाकर आचार्य श्री की ओर निहारने लगा। न मालूम किस कारण से राजा का चित्त