Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 25
________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह २४ यह राजगद्दी एक चतुर ब्राह्मण की सहायता से प्राप्त की थी । जैनी था यह बात इस बात में बाधक नहीं होती कि चन्द्रगुप्त मुद्रा राक्षस नामक नाटक में एक जैन साधु का भी उल्लेख है । यह साधु नंदवंशीय एवम् पीछे से मौर्यवंशीय राक्षस मंत्री का खास मित्र था ।" राजाओं के Mr. H. L. O. Garrett M. A; L. E. S. in his essay "Chandragupta Maurya" says-"Chandragupta, who was said to have been a Jain by religion, went on a pilgrimage to the South of India at the time of a great famine. There he is said to have starved him. 'self to death. At any rate he ceased to reign about '298 B. C." इत्यादि बातों से यही सिद्ध होता है कि सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य एक जैनी राजा था । उसने अपने राज्य को त्याग कर जैन दीक्षा ली थी । दीक्षा लेकर उसने समाधि मरण प्राप्त किया था । और ज्यों ज्यों ऐतिहासिक खोज होती रहेगी त्यों त्यों प्रमाण भी 'विस्तृत संख्या में हस्तगत होते रहेंगे । उनका पुत्र बिन्दुसार राजा था । यह जैन चन्द्रगुप्त के राज्य का उत्तराधिकारी हुआ । यह भी बड़ा पराक्रमी और नीतिज्ञ धर्म का उपासक एवं प्रचारक भी था भी जैन धर्म उत्थान के उच्च वेदान्तियों का जोर मिटता जा रहा था शिखिर ! उन के दिन घर नहीं थे । जो राजा का धर्म होता है वही प्रजा का होता है यह एक 1 साधारण बात है । इसी नियमानुसार जैन धर्म का क्षेत्र बहुत इसके शासन काल में पर था । बौद्ध और

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