Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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पाटलीपुर का इतिहास कन्धार, अर्बिस्तान, प्रीस, मिश्र, आफ्रिका एवं अमेरिका तक में जैन धर्म का प्रचार तथा फैलाव किया। ब्राह्मणों ने इसे नीच जाति एवं शुद्राणी का पुत्र होना लिखा है। इस तरह उसे नीच बताने का कारण यही है कि वह जैनधर्मावलम्बी था । जैनधर्म के प्रचारक को इस तरह सम्बोधन करना ब्राह्मणों के लिये असाधारण बात नहीं थी। ब्राह्मणों ने कलिंग देश के निवा सियों को "वेदधर्म विनाशक" ही लिख डाला है । इतना लिख कर ही वे सन्तोष नहीं मान बैठे वरन् उन्होंने यह भी उल्लेख कर दिया कि कलिंग प्रदेश अनार्य भूमि है तथा उस भूमि में रहने वाला ब्राह्मण पतित हो जाता है। जब वे जैनधर्म के इतने कट्टर विरोधी थे तो चन्द्रगुप्त को हल्की जाति का लिख दिया तो इसमें
आश्चर्य की क्या बात थी ? ... सम्राट चन्द्रगुप्त का सच्चा ऐतिहासिक वर्णन कई वर्षों तक गुप्त रहा । यही कारण था कि कई लोग चन्द्रगुप्त को जैनी मानने में संकोच किया करते थे। और कई तो साफ इन्कार करते थे कि चन्द्रगुप्त जैनी नहीं था। पर अब यूरोपीय और भारतीय पुरातत्वज्ञों की सोध और खोज से तथा ऐतिहासिक साधनों से सर्वथा सिद्ध तथा निश्चय हो चुका है कि चन्द्रगुप्त मौर्य जैनी था। कतिपय विद्वानों को सम्मतियों का यहाँ लिखा जाना युक्तिसंगत होगा।
चन्द्रगुप्त के जैनी होने के विशद प्रमाण राय बहादुर डाक्टर नरसिंहाचार्य ने अपने "श्रवण वेलगोल" नामक पुस्तक में संग्रह किये हैं । यह पुस्तक अंग्रेजी भाषा में लिखी गई है । जैन गजट आफिस, ८ अम्मन कुवेल स्ट्रीट, मदरास के पते से मंगाने पर