Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ 'प्राचीन जैन इतिहास , संग्रह १४ वर्णित है । कारण इस प्रदेश में जितने नृपति हुए सब के सब ऐतिहासिक राजा हैं । अतएव यहाँ पर पाटलीपुत्र के राजाओं से ही ऐतिहासिक वर्णन बताया जायगा किन्तु इस से पहिले के श्रेणिक और कौणिक नरेश का थोड़ा हाल दिखा देना असंगत नहीं होगा। .: यह वर्णन उस समय का है जब कि मगधदेश का राजमुकुट शैशुवंशीय महाराजा प्रश्नजित के मस्तक पर शोभायमान था। राजा प्रश्नजित के १०० पुत्र थे राजा ने अपना राज्य जेष्ट पुत्र को बिना परीक्षा किये न देने का विचार कर सब पुत्रों की कुशलता की परीक्षा लेनी चाही। इस परीक्षा में जो सर्वोपरी उत्तीर्ण होगा वही मेरा उत्तराधिकारी एवं राज्य का अधिकारी होगा, ऐसा राजा का आदेश एवं मन्तव्य था। अनेक प्रकार से परीक्षा करने से ज्ञात हुआ कि श्रेणिक कुमार राजा होने के लिए सर्व गुण युक्त है फिर राजा ने दूरदर्शिता से सोचा कि यदि श्रेणिक यहीं पर रहेगा तो न मालूम शेष पुत्रों में से कौन राज्य की लालसा से उपद्रव कर बैठे । इसी हेतु एक बार बगीचे में श्रेणिक का ऐसा अपमान किया गया कि श्रेणिककुमार देश छोड़ कर भाग गया। जब श्रेणिक देश से भग कर जा रहा था तो रास्ते में उसे बौद्ध भिक्षुओं से भेंट हुई श्रेणिक रात्रि के समय बौद्धों के मठ में ही ठहरा तथा उसने आपबीती सब को कह सुनाई । . बौद्धों ने श्रेणिक को कहा कि यदि तुम्हें राज्य प्राप्त करने की आंकाक्षा है तो भगवान् बौद्ध पर विश्वास रक्खो । बोद्धधर्म पर श्रद्धा रखने से तुम्हें अवश्य राज्य प्राप्त होगा पर उस दशा में तुम बोद्ध धर्म का प्रचार करोगे तथा इस धर्म को स्वयं भी

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56