Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 02 Author(s): Osho Publisher: Unknown View full book textPage 3
________________ आदमी अपनी जिंदगी का करीब एक तिहाई भाग, लगभग बीस वर्ष निद्रा में व्यतीत करता है। लेकिन निद्रा उपेक्षित की जाती रही है, भयंकर रूप से उपेक्षित हुई है। कोई इसके बारे में सोचता नहीं, कोई इस पर ध्यान नहीं देता। ऐसा हुआ है, क्योंकि आदमी ने चेतन मन की ओर बहुत ज्यादा ध्यान लगाया है। मन के तीन आयाम हैं। जैसे भौतिक पदार्थ के तीन आयाम हैं, मन के भी तीन आयाम हैं। मात्र एक आयाम ही चेतन है। दूसरा आयाम अचेतन है और फिर एक दूसरा आयाम भी मौजूद है, जो है अतिचेतन, परम चेतन। ये तीन आयाम होते हैं मन के। ऐसा बिलकुल भौतिक पदार्थ की भांति होता है, क्योंकि गहराई में मन भी भौतिक पदार्थ है। या तुम इसे दूसरे ढंग से कह सकते हो-पदार्थ ही मन है। ऐसा है, क्योंकि केवल एक सत्ता ही अस्तित्व रखती है। मन सूक्ष्म पदार्थ है, पदार्थ स्थूल मन है। लेकिन साधारणतया आदमी केवल एक आयाम में रहता है, चेतन में। निद्रा संबंधित है अचेतन से; सपने संबंध रखते हैं अचेतन से; ध्यान और आनंद का संबंध है परमचेतन से; जागना और चिंतन करना संबंधित है चेतन से। पहली बात जो ध्यान में ले लेनी है मन के विषय में वह यह है कि यह एक आइसबर्ग की तरह, बर्फ की चट्टान की तरह ही है-सबसे ऊंचा भाग होता है सतह पर। तुम देख सकते हो इसे, लेकिन यह मात्र एक दसवां हिस्सा होता है संपूर्ण का। दस के बाकी नौ भाग पानी के नीचे छिपे होते हैं। साधारणत: तुम इसे नहीं देख सकते, जब तक कि तुम गहराई में न जाओ। पर ये तो दो ही आयाम हुए। एक तीसरा आयाम है बिलकुल वैसा ही जब किसी आइसबर्ग का एक भाग वाष्प बन जाता है और आकाश में मंडराता एक छोटा बादल बन जाता है। कठिन है अचेतन तक पहुंचना। यह करीबकरीब असंभव है उस बादल तक पहुंच पाना। निस्संदेह यह उसी आइसबर्ग का हिस्सा है लेकिन वाष्प बना होता है। इसलिए ध्यान इतना कठिन है, समाधि इतनी दुस्साध्य है। यह व्यक्ति की समग्र ऊर्जा ले लेती है। यह मांगती है व्यक्ति की समग्र प्रतिबद्धता। केवल तभी अतिचेतन की बादल सदृश घटना में कोई ऊर्ध्वगामी गति संभव हो पाती है। चेतन मन तो सहज क्रियाशील है। तुम चेतन के द्वारा सुन रहे हो मुझे। यदि तुम सोच रहे हो उस पर जो कि मैं कह रहा हूं यदि तुम भीतर ही भीतर संवाद बना रहे हो उसके साथ जो कुछ मैं कह रहा हं यदि एक प्रकार की व्याख्या भीतर चल रही है, तो यह है चेतन मन। लेकिन तुम मुझे सुन सकते हो बिना चिंतन-विचार किए गहन प्रेम में, हृदय से हृदय तक, जो कुछ मैं कह रहा हूं उसके साथ किसी भी ढंग की शाब्दिक क्रिया न बनाते हुए, जो कुछ मैं कह रहा हूं उस पर निर्णय न देते हुए, उसे गलत या सही न सोचते हुए, किसी भी मूल्यांकन के बिना। नहीं; तुम बसPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 419