Book Title: Pandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 10
________________ į प्रस्तावना डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन एम०ए०, पी एच० डी०, साहित्याचार्य प्राध्यापक एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, शासकीय एस० एन० स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खण्डवा प्रवृत्ति और निवृत्ति जिसके 'धर्म' का कार्य है - वह जो पार करता है द्वारा धारण किया जाय । 'प्रश्न है वह क्या है जिसे धारण किया जाता है या जो धारण करता है ?' मनुष्य की मुख्य समस्या है - उसका अस्तित्व | उसके सारे भौतिक और आध्यात्मिक कार्य तथा प्रवृत्तियाँ इसी प्रश्न के हल के लिए हैं । बहु सोचता है कि क्या उसका भौतिक अस्तित्व ही है या और कोई सूक्ष्म अस्तित्व भी है, जो जन्म और मृत्यु की प्रक्रिया से परे है ? फिर वह जीवन में शुभ-अशुभ प्रवृत्तियों की कल्पना करता है और अपने आपको शुभ पथ में लगाना चाहता है। इस गार्हस्थ जीवन में अशुभ प्रवृत्तियों से एक दम बच पाना नितान्त प्रसंभव है, जीवन की प्रक्रिया ही कुछ ऐसी पेचीदा है। इसलिए वह मान लेता है कि 'शुभाशुभाभ्यां मार्गाम्यां बहति वासना सरित् - यह वासनारूपी सरिता अच्छे चुरे मार्गों से बहती है और उसे प्रयत्नपूर्वक अच्छे मार्ग पर लगना और शुभ से बचना चाहिए । दूसरा प्रश्न वो उत्तर - जहाँ तक दूसरे प्रश्न का सम्बन्ध है, उसके दो उत्तर हो सकते हैं । एक तो यह है कि विश्व एक प्रवाह है, जिसमें प्रत्येक वस्तु को उसका स्वभाव धारण करता है । 'वस्तु स्वभावो धर्मः । जल तभी तक जल है जब तक उसमें ठंडक है। भाग तब तक आग है जब तक उसमें गर्मी है। किसी वस्तु को उसका अपना भाव ही { ix }

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