Book Title: Panchashak Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Sagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 420
________________ अष्टादश ] भिक्षुप्रतिमाकल्पविधि पञ्चाशक ३१५ २. धृतियुक्त - धृति अर्थात् धैर्य । धैर्यवान् जीव रति-अरति से पीड़ित नहीं होता है। ३. सात्त्विक - सात्त्विक जीव अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में हर्षशोक नहीं करता है। ४. भावितात्मा - गच्छ के आचार्य या गुरु की आगमानुसार आज्ञा लेकर जिसने चित्त को सद्भावना से भावित बनाया हो या जिसने पूर्व में प्रतिमाओं का अभ्यास किया हो वह भावितात्मा है। ५. सुनिर्मित - गच्छ में ही रहकर जिसने प्रतिमाकल्प का आहारादि सम्बन्धी अभ्यास किया हो। ६. श्रुतज्ञानी - जो उत्कृष्ट से थोड़ा कम दस पूर्व का ज्ञाता हो और जघन्य से नौवें पूर्व की तीसरी वस्तु तक का ज्ञाता हो, वह श्रुतज्ञानी है। ७. व्युत्सृष्टकाय - शारीरिक सेवा की आकांक्षा से रहित। ८. त्यक्तकाय - शरीर के ममत्व से रहित। ९. उपसर्गसहिष्णु - जिनकल्पी की तरह देवकृत, मनुष्यकृत आदि उपसर्गों को सहने वाला। १०. अभिग्रह वाली एषणा लेने वाला - संसृष्टा, असंसृष्टा, उद्धृता, अल्पलेपा, अवगृहीता, प्रगृहीता और उज्झितधर्मा - इन सात प्रकार की एषणाओं (भिक्षाओं) में से प्रारम्भ की दो कभी न ले। शेष पाँच में से एक पानी की और एक आहार की - इस प्रकार दो एषणाओं का अभिग्रह होता है - ऐसी एषणा (भिक्षा) लेने वाला। ११. अलेप आहार लेने वाला – चिकनाई रहित भोजन लेने वाला। १२. अभिग्रहवाली उपधि लेने वाला- प्रतिमाकल्प के योग्य अभिग्रह से मिली उपधि लेनी चाहिए। प्रतिमाकल्प के योग्य उपधि न मिले तो न ले, ऐसा साधु ।। ४-६ ॥ गच्छा विणिक्खमित्ता पडिवज्जइ मासियं महापडिमं । दत्तेग भोयणस्स पाणस्सवि एगं जा मासं ।। ७ ।। आईमज्झवसाणे छग्गोयरहिंडगो इमो णेओ । णाएगरायवासी एगं च दुगं च अण्णाए ।। ८ ।। जायण-पुच्छा-ऽणुण्णावण-पण्ह'वागरण-भासगो चेव।। आगमण- वियड- गिहरुक्ख- मूलगावासयतिगोत्ति ।। ९ ।। १. 'पुट्ठ' इति पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472