Book Title: Panchashak Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Sagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 448
________________ एकोनविंश] तपोविधि पञ्चाशक ३४३ जाने वाले रोहिणी आदि दूसरे भी अनेकविध तप हैं। ये तप विषयाभ्यास रूप होने से मुग्ध लोगों के लिए अवश्य हितकारी हैं, किन्तु मोक्षफल-प्रदाता नहीं हैं ।। २३ ।। देवताओं के नाम रोहिणि अंबा तह मंदउण्णया सव्वसंपयासोक्खा । सुयसंतिसुरा काली सिद्धाईया तहा चेव ।। २४ ।। एमाइदेवयाओ पडुच्च अवऊसगा उ जे चित्ता । णाणादेसपसिद्धा ते सव्वे चेव होन्ति तवो ।। २५ ।। रोहिणी अम्बा तथा मन्दपुण्यिका सर्वसम्पत्सौख्याः । श्रुतशान्तिसुरा काली सिद्धायिका तथा चैव ।। २४ ।। एवमादिदेवताः प्रतीत्य अपवसनानि तु ये चित्राः । नानादेशप्रसिद्धास्ते सर्वे चैव भवन्ति तपः ।। २५ ।। रोहिणी, अम्बा, मन्दपुण्यिका, सर्वसम्पदा, सर्वसौख्या, श्रुतदेवता, शान्तिदेवता, काली, सिद्धायिका - ये नौ देवता हैं ।। २४ ।। इन नौ देवताओं की आराधना के लिए जो विविध तप विविध देशों में प्रसिद्ध हैं, वे सभी तप हैं। उनमें रोहिणी तप सात वर्ष और सात महीने तक करना चाहिए अथवा रोहिणी नक्षत्र के दिन उपवास करना चाहिए और भगवान् वासुपूज्य की प्रतिमा की पूजा एवं प्रतिष्ठा करनी चाहिए। अम्बा तप में पाँच पंचमी को एकाशन आदि तप करना चाहिए और भगवान् नेमिनाथ तथा अम्बिका देवी की पूजा करनी चाहिए। श्रुतदेवता तप में ग्यारह एकादशी पर्यन्त उपवास, मौनव्रत और श्रुतदेवता की पूजा करनी चाहिए। शेष तप लोकरूढ़ि के अनुसार जान लेने चाहिए ।। २५ ॥ . तप का स्वरूप जत्थ कसायणिरोहो बंभं जिणपूयणं अणसणं च । सो सव्वो चेव तवो विसेसओ मुद्धलोयम्मि ।। २६ ।। यत्र कषायनिरोधो ब्रह्म जिनपूजनमनशनं च। तत्सर्वं चैव तपो विशषतो मुग्धलोके ।। २६ ।। जिनमें कषाय का निरोध हो, ब्रह्मचर्य का पालन हो, जिनेन्द्रदेव की पूजा-स्तुति हो और भोजन का त्याग हो, वे सभी तप कहलाते हैं। शेष सभी तप मुग्धलोक में विशेष रूप से प्रचलित हैं। मुग्धता के कारण शुरु से ही वे मोक्षार्थ तप में प्रवृत्ति नहीं करते हैं, अपितु लौकिक उपलब्धियों हेतु तप करते हैं, जबकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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