Book Title: Panchashak Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Sagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 447
________________ ३४२ पञ्चाशकप्रकरणम् पञ्चाशकप्रकरणम् [एकोनविंश __ शुक्ल पक्ष में एक्कम के दिन एक भिक्षा या एक कौर के बराबर आहार लेना और प्रत्येक दिन क्रमशः भिक्षा या कौर की संख्या बढ़ाते जाना और इसी प्रकार क्रमश: पूर्णिमा के दिन पन्द्रह भिक्षा या पन्द्रह कौर के बराबर आहार लेना वज्रमध्या प्रतिमा है ।। २० ।। भिक्षा और कौर परिमाण एत्तो भिक्खामाणं एगा दत्ती विचित्तरूवावि । कुक्कुडिअंडयमेत्तं कवलस्सवि होइ विण्णेयं ।। २१ ॥ इतो भिक्षामाणमेका दत्तिर्विचित्ररूपापि । कुक्कुडि-अण्डमानं कवलस्यापि भवति विज्ञेयम् ।। २१ ।। एक बार में जितना भोजन डाला जाये वह एक दत्ति कहलाता है और एक दत्ति एक भिक्षा कहलाती है। एक बार में डाला गया भोजन, चाहे वह कम हो या अधिक, एक द्रव्य हो या अनेक द्रव्यों वाला हो तो भी एक दत्ति अर्थात् एक भिक्षा कहा जाता है और कौर का परिमाण मुर्गी के अण्डे के बराबर होता है, ऐसा जानना चाहिये ।। २१ ।। इस तप से सफलता किसे ? एवं च कीरमाणं सफलं परिसुद्धजोगभावस्स । णिरहिगरणस्स णेयं इयरस्स ण तारिसं होइ ।। २२ ।। एवञ्च क्रियमाणं सफलं परिशुद्धयोगभावस्य । निरधिकरणस्य ज्ञेयमितरस्य न तादृशं भवति ।। २२ ॥ निर्दोष क्रिया, निर्दोष भाव तथा महारम्भ रूप या कलहरूप अधिकरण से रहित साधु का यह तप सार्थक होता है अर्थात् मोक्ष फलदायक होता है, अन्य तप वैसा फलदायी नहीं होता है ।। २२ ।। रोहिणी आदि विविध तपों का निर्देश अण्णोऽवि अस्थि चित्तो तहा तहा देवयाणिओएण । मुद्धजणाण हिओ खलु रोहिणीमाई मुणेयव्वो ॥ २३ ॥ अन्यदपि अस्ति चित्रं तथा तथा देवतानियोगेन । मुग्धजनानां हितं खलु रोहिण्यादि ज्ञातव्यम् ।। २३ ।। लोकरूढ़ि के अनुसार रोहिणी आदि देवताओं को उद्दिष्ट करके किये १. 'विचित...' इति पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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