Book Title: Panchashak Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Sagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 430
________________ अष्टादश] भिक्षुप्रतिमाकल्पविधि पञ्चाशक ३२५ गमला स्थविरकल्प मन्त्र से लूतादि रोग को दूर करने के समान है और प्रतिमाकल्प सर्पदंशादि की स्थिति में काटने और सेंकने रूप विशेष चिकित्सा के समान है - ऐसी कर्मविपाकरूप रोगों की चिकित्सा-विधि जाननी चाहिए ।। २९ ।। गुरुलाघवविषयक दूसरी युक्ति तह सुत्तवुड्डिभावे गच्छे सुत्थम्मि दिक्खभावे य । पडिवज्जइ एयं खलु ण अण्णहा कप्पमवि एवं ।। ३० ।। इहरा ण सुत्तगुरुया तयभावे ण दसपुव्विपडिसेहो । एत्थं सुजुत्तिजुत्तो गुरुलाघव - चिंतबज्झम्मि ।। ३१ ।। अप्पपरिच्चाएणं बहुतरगुण - साहणं जहिं होइ । सा गुरुलाघवचिंता जम्हा णाओववण्णत्ति ।। ३२ ।। तथा सूत्रवृद्धिभावे गच्छे सुस्थे दीक्ष्याभावे च । प्रतिपद्यते एतत्खलु नान्यथा कल्पमपि एवम् ।। ३० ।। इतरथा न सूत्रगुरुता तदभावे न दशपूर्विप्रतिषेधः । अत्र सुयुक्तियुक्तो गुरुलाघवचिन्ताबाह्ये ।। ३१ ।। अल्पपरित्यागेन बहुतरगुणसाधनं यत्र भवति । सा गुरुलाघवचिन्ता यस्मात् न्यायोपपन्नेति ॥ ३२ ॥ जब गच्छ में किसी बहुश्रुत साधु के होने से सूत्रार्थ की वृद्धि हो रही हो और प्रतिमाकल्प स्वीकार करने वाले साधु में दशपूर्व से अधिक श्रुत पढ़ाने की शक्ति न हो, गच्छ में बाल-वृद्ध, रोगी आदि न होने से गच्छ बाधारहित हो अथवा बाल वृद्ध आदि की सेवा करने वाले हों तथा आचार्यादि गच्छ के पालन में तत्पर हों, कोई नवीन दीक्षा लेने वाला न हो, उस समय ही प्रतिमाकल्प को स्वीकार किया जा सकता है। अन्यथा पूर्वोक्त संहनन, धृति आदि योग्यता होने पर भी प्रतिमाकल्प को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार यह प्रतिमाकल्प गुरुलाघव की विचारणा से रहित नहीं है ॥ ३० ॥ गच्छ में सूत्रवृद्धि न हो रही हो, अन्य कोई पढ़ने वाला न हो, फिर भी कोई प्रतिमाकल्प को स्वीकार करे तो श्रुतगौरव नहीं होगा। श्रुतगौरव के अभाव में सम्पूर्ण दशपूर्वधर को भी प्रतिमाकल्प की साधना करने का निषेध किया गया है (यदि श्रुतगौरव की आवश्यकता नहीं होती तो दशपूर्वधर के लिए भी प्रतिमा कल्प का निषेध नहीं किया जाता)। दशपूर्वधर श्रुतप्रदान, प्रवचन आदि में १. अकारप्रश्लेशात् 'सूत्रावृद्धिभावे' इत्यपि संस्कृतच्छाया सम्भवा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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