Book Title: Panchashak Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Sagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 435
________________ ३३० पञ्चाशकप्रकरणम् प्रतिमाकल्प की परमार्थ रहितता का मतान्तर से निराकरण अण्णे भणति एसो विहियाणुद्वाणमागमे भणिओ । पडिमाकप्पो सिट्ठो दुक्करकरणेण विणणेओ ।। ४३ ।। अन्ये भणन्ति एषो विहितानुष्ठानमागमे भणितः । प्रतिमाकल्पः श्रेष्ठो दुष्करकरणेन विज्ञेयः ।। ४३ ।। दूसरे कुछ आचार्य कहते हैं कि आगम में यह प्रतिमाकल्प स्थविरकल्प की अपेक्षा दुष्कर कहा गया है, इसलिए विहितानुष्ठान है और विहितानुष्ठान होने से आचरणीय है || ४३ ॥ १. सा = उपर्युक्त का और अधिक स्पष्टीकरण विहियाणुट्टापि य सदागमा एस जुज्जई जम्हा ण जुत्तिबाहियविसओऽवि सदागमो विहितानुष्ठानमपि च सदागमादेषो युज्यते यस्मान्न युक्तिबाधितविषयोऽपि सदागमो प्रतिमाकल्प उचित एवं आगम विहित अनुष्ठान है । क्योंकि जो कथन युक्ति से बाधित एवं अनुचित हो वह आगम विहित नहीं होता है । पुनः जिसके कथन युक्तिसंगत और उचित हों वही सदागम हो सकता है। प्रतिमाकल्प आगमोक्त और युक्तिसंगत है, इसलिए हमने जो समाधान पहले किया था, वह अन्य आचार्यों की अपेक्षा से भी उचित ही सिद्ध होता है ॥ ४४ ॥ केवल आगम से ही अर्थ का निर्णय नहीं हो सकता जुत्तीए अविरुद्धो सदागमो सावि तयविरुद्धत्ति । इय अण्णोऽण्णाणुगयं उभयं पडिवत्तिहेउत्ति ।। ४५ ।। [ अष्टादश एवं । होइ ॥ ४४ ॥ एवम् | भवति ।। ४४ ।। युक्त्या अविरुद्धः सदागमः सापि तदविरुद्धेति । इति युक्तिः । Jain Education International जो युक्ति से अविरुद्ध हो वह सदागम है । युक्ति भी सदागम से अविरुद्ध होती है। सदागम से विरुद्ध युक्ति युक्ति नहीं है। इस प्रकार सदागम और युक्ति परस्पर सम्बद्ध हैं । इनकी परस्पर सम्बद्धता ही सम्यक् अर्थनिर्णय का हेतु है ।। ४५ ।। अन्योऽन्यानुगतमुभयं प्रतिपत्तिहेतुरिति ।। ४५ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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