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दोहा
शरद पुरण निधि चंद्रमा, संवत्सर (१९०६)सुखकार; गौतम केवळज्ञानको, मास दिवस चित्त धार. ३५ भावनगर भेटे सहि, श्री गवडी प्रभु पास; चिदानंद तस कृपाथकी, सकळ फळी मन आस. ३६ इति श्री कपूरचंदजीकृत दया छत्रीशी
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श्रीपरमात्म छत्रीशी
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.. दुहा परम देव परमातमा, परम ज्योति जगदीश; परम भाव उर आनके, प्रणमत हुं निशदिश. १ एक ज्युं चेतन द्रव्य हे, तामें तीन प्रकार बहिरातम अंतर कह्यो, परमातम पद सार. २ बहिरातम ताकुं कहे, लखे न ब्रह्मस्वरूप; मंगन रहे परद्रव्यमें, मिथ्यावंत अनूप. ३
१ हमेशां.
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