Book Title: Padyavali
Author(s): Karpurvijay, Kunvarji Anandji
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
अमी स्रवत शशि जोगम, अरुणद्युति थिर होय । करत प्रतिष्ठा बिंबनी, अति प्रभाव तस जोय ॥१९५॥ तखत मूलनायक प्रभु, बैठावे तिण वार । जिनघर कलश चढावतां, चंद्रजोग सुखकार ॥१९६॥ पोषधशाल निपावतां, दानशाल घर हाट । महेल दूर्ग गढ कोटनो, रचित सुघट धु घाट ॥१९७॥ संघमाल आरोपतां, करतां तीरथ दान । दीक्षा मंत्र बतावतां, चंद्रजोग परधान ॥१९८॥ घर नवीन पुर नगरमें, करता प्रथम प्रवेश । वस्त्र आभूषण संग्रहत, लेश इजारे देश ॥१९९॥ जोगाभ्यास करत शुद्धि, औषध भैषज मीत ।। खेती बाग लगावता, करता नृपथी प्रीत ॥२०॥ राजतिलक आरोपता, करता गढ परवेश । चंद्रजोगमें भूपति, विलसे सुख सुदेश ॥२१॥ राज्य सिंघासन पग धरत, करत और थिर काज । चंद्रयोग शुभ जाणजो, चिदानंद महाराज ॥२०२॥
. ॥ चोपाइ ॥ मठ देवल अरु गुफा बनावे,
रतन धातुना घाट घडावे ।

Page Navigation
1 ... 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376