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अपना स्वर दक्षण चले, शत्रुना पण तेह ॥ जीत लहे संग्राममें, प्रथम चढे नर जेह ॥२६५ ॥ शशि चलत को भूपति, मत जावो रणमाहि । खेतजीत अरियण लहे, यामें संशय नांहि ॥२६६॥ सुखमन स्वर संग्राममें, भला कहे नवि कोय । जावे सुखमन स्वर विषे, शिश कटावे सोय ॥२६७॥ दूर देश संग्राममें, जाता शशि परधान । निकट युद्धमें जाणजो, जयकारी स्वर भान ॥२६८॥ सन्मुख ऊर्ध्व दिशा रही, जुद्ध प्रश्न करे कोय । सम अक्षर शशि स्वर हुआ, जीत तेहनी होय ॥२६९॥ पूठे दक्षण मध्यथी, दूत प्रश्न करे जेह । विषमाक्षर भानु हुआ, खेत विजय लहे तेह ॥२७०॥ युद्धयुगलनी पूर्ण दिशी, रही प्रश्न करे कोय । प्रथम नाम जस उच्चरे, जीत लहे नर सोय ॥२७१॥ रिक्त पक्षमें आयके, मिथुन युद्ध परसंग । पूछत पहेला हारीए, दूजा रहत अभंग ॥२७२।। करत युद्ध परियाण वा, रिक्तमाहे लहे हार । अल्पवली भूपतिथकी, महाबली चित्त धार ॥२७३॥