Book Title: Padyavali
Author(s): Karpurvijay, Kunvarji Anandji
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

Previous | Next

Page 339
________________ ( १०४ ) रवि राहु कुज तीसरो, शनि चतुर्थ वखाण || पंच तंत्र के भान घर, स्वामी अनुक्रम जाण || २४७|| बुध पृथ्वी जलको राशि, शुक्र अग्निपति मित । वायु गुरु सुर चंदमें, तत्र स्वाम इण रीत ॥ २४८ ॥ स्वामी अपणो आपणो, अपणे घरके मांहि । शुभ फलदायक जाणजो, यामें संशय नांहि ॥ २४९॥ जय तुष्टि पुष्टि रति, क्रीडा हास्य कहाय । एम अवस्था चंदनी, षट जल में थाय ॥ २५० ॥ ज्वर निद्रा परियास पुन, कंप चतुर्थी पिछाण । वेद अवस्था चंदनी, वायु अग्निमें जाण ।। २५१ ॥ प्रथम गतायु दूसरी, मृत्यु नभके संग । कही अवस्था चंदनी, द्वादश एम अभंग ॥ २५२ ॥ मधुर कषायल तिक्त पुन, खारा रस कहेवाय । नभ अव्यक्त रस पंचके, अनुक्रम दीये बताय ॥ २५३ ॥ जैसा रस आस्वादनी, होय प्रीत मनमांहि । तैसा तत्र पीछाणजो, शंका करजो नांहि ॥ २५४ ॥ श्रवण धनिष्टा रोहिणी, उत्तराषाढ अभीच । ज्येष्ठा अनुराधा सपत, श्रेष्ठ महीके बीच ॥ २५५ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376