Book Title: Padyavali
Author(s): Karpurvijay, Kunvarji Anandji
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 358
________________ . .. (१२३ ) भमर गुफामें जायके, करे अनिलकुं पान । पछे हुताशन तेहने, मिले दसम अस्थान ॥ ४१८ ॥ मारगमें जातां थकां, जे जे अचरिज थाय । शांत दशामें वर्तता, मुखथी कही न जाय ॥ ४१९ ॥ वधे भावना शीतमें, तन मन वचन अतीत । तिम तिम सुखसायरतणी, ऊठेलहेर सुण मित ॥४२०॥ इंद्रतणा सुख भोगतां, जे तृप्ति नवि थाय । ते सुख सुण छिन एकमें, मिले ध्यानमें आय ॥४२१॥ ध्यान विना नवि लखी शके, मन कल्लोल स्वरूप । लख्या विना किम उपशमे ?, येहू भेद अनूप ॥४२२॥ आसण पद्म लगायके, मूलबंध दृढ लाय । मेरुमंड सीधा करे, भेद द्वारकुं पाय ॥४२३ ॥ करे स्वास संचार तव, विकल्प भाव निवार । जिम जिम थिरता उपजे, तिम तिमप्रेम वधार ॥४२४॥ प्रेम विना नवि पाइए, करतां जतन अपार । प्रेम प्रतीते है निकट, चिदानंद चित्त धार ॥ ४२५ ॥ जो रचना तिहुँ लोकमें, सो नर तनमें जान । • अनुभव विण होवे नहीं, अंतर तास पीछान ॥४२६॥ अंतरभाव विचारतां, मनवायु थिर थाय । विम तिम नाभीकमलमें, पूरक थइ समाय ॥ ४२७॥

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