Book Title: Padyavali
Author(s): Karpurvijay, Kunvarji Anandji
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 368
________________ (१३) 05 (मंगलाचरण-दोहा ) परम ज्योति परमात्मा, परमानंद अनूप; नमो सिद्ध सुखकर सदा, कलातीत चिद्-रूप. पंच महाव्रत आदरत, पाळत पंचाचार; समतारस सायर सदा, सत्तावीश गुण धार. पंच समिति गुपतिधरा, चरणकरण गुण धार; चिदानंद जिनके हिये, करुणा भात्र अपार.. सुरगिरि हरि सायर जीसे, धीर वीर गंभीर; अप्रमत्त विहारथी, मानुं अपर समीर. इत्यादिक गुणयुक्त जे, जंगम तीरथ जाण; ते मुनिवर प्रणमुं सदा, अधिक प्रेम मन आण. लाख बातकी एक बात, प्रश्न प्रश्नमें जाण; एक शत चौदे प्रश्नको उत्तर कहुं वखाण. प्रश्नमाळ ए कंठमें, जे धारत नर नार; तास हिये अति उपजे, सार विवेक विचार. प्रश्न. देव धरम अरु गुरु कहा ? सुख दुःख ज्ञान अज्ञान; ध्यान ध्येय ध्याता कहा ? कहा मान अपमान ? १ जीव अजीव कहो कहा ? पुण्य पाप कहा होय ? आश्रव संवर निर्जरा, बंध मोक्ष कहो दोय ? २ Wr

Loading...

Page Navigation
1 ... 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376