Book Title: Padyavali
Author(s): Karpurvijay, Kunvarji Anandji
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 357
________________ (१२२) वत्तमान ए कालमें, उत्कृष्टी थिति जोय । एक शत सोले वर्षनी, अधिक न जीवे कोय॥४०९॥ सोपक्रम आयु कह्यो, पंचमकाल मझार। . सोपक्रम आयु विषे, घात अनेक विचार ॥ ४१० ॥ मंद स्वास स्वरमें चलत, अल्प उभर होय खीण । अधिक स्वास चालत अधिक, हीण होत परवीण ॥४११॥ चार समाधि लीन नर, पट शुभध्यान मझार । तुष्णी भाव बेठा ज्युं दस, बोलत द्वादश धार ॥४१२॥ चालत सोलस सोवतां, चलत स्वास बावीश । नारी भोगवतां जाणजो, घटत स्वास छत्रीश ॥४१३॥ थोडी वेलामाहे जस, बहत अधिक स्वर श्वास । आयु छीजे बल घटे, रोग होय तन तास ॥ ४१४ ॥ अधिका नांहि बोलीए, नहीं रहीए पड सोय । अति शीघ्र नवि चालीए, जो विवेक मन होय ॥४१५॥ जाण गति मन पवनकी, करे स्वास थिर रूप । सो ही प्राणायामको, पावे भेद अनूप ॥ ४१६॥ मेरु रुचकप्रदेशथी, सूरतडोरकु पोय । कमलबंध छोड्या थकां, अजपा समरण होय ॥४१७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376