Book Title: Padyavali
Author(s): Karpurvijay, Kunvarji Anandji
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 340
________________ ( १०५ ) मूल उतराभाद्रपद, रेवती आर्द्रा जाण । पूर्वाषाढ अरु शतभिषा, अश्लेषा जल ठाण ॥ २५६॥ मघा पूवा फाल्गुनी, पूर्वभाद्रपद स्वात । कृत्तिका भरणी पुष्य ए, सप्त अग्नि विख्यात ॥ २५७॥ हस्त विशाखा मृगसिरा, पूनर्वसु चित्राय । उत्तराफाल्गुण अश्विनी, अनिलधाम सुखदाय ॥ २५८॥ नमथी पवन पवनथकी, पावक तत परकास । पावकथी पाणी लखो, मही लखो फुनि तास ॥ २५९॥ क्रोधादिक अग्नि उदे, इच्छा वायु मझार । क्षांत्यादिक गुण मन विषे, जल भूमांहि विचार || २६० गुदाधार धरणीतणो, लिंग उदकनो जाण । तेज धार चक्षु सुधी, वायु घ्राण वखाण ॥ २६१ ॥ श्रवण द्वार नभना कह्या शब्दादिक आहार । चिदानंद इण पांचका, जाणो ओर निहार ॥ २६२ ॥ चंद चलत नवि चालीए, जुद्ध करणकुं मित । चलत चंदमें तेहना, शत्रुनी होय जीत ॥ २६३ ॥ दिवसपति स्वरमांहि जे, युद्ध करणकुं जाय । विजय लहे संग्राम में, शत्रुसेन पलाय ॥ २६४ ॥

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