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(११७) जिहां नासा अग्रे फुनि, भूको मध्य विचार । स्वर जोयण कीकीकही, अनुक्रमथी चित्तधार ॥३६४॥ रसना शशि दिवस थिति, घ्राण हुतासन जान । सप्तबालिका तारका, कालमान पहिचान ॥३६५॥ लघुनीति वडीनीत पुन, वायुश्रव सम काल ॥ होय दिवस दस तेहनी, कायथिति बुध भाल ॥३६६॥ गाजवीज दोउ नहीं, मेघ न खंचे धार । कागवास आवास तस, हंसागमन विचार ।। ३६७ ॥ अधिक चंद्रसुख भाल जस, चलत कायमें जान । चंद सूर दोउ गया, मरन समो पहिचान ॥ ३६८ ॥ एक पक्ष विपरीत स्वर, चलत रोग तन थाय। दोउ पक्ष सज्जन अरि, त्रीजे मरण कहाय ॥ ३६९ ।। अग्नि बाण बिंदु लखण, इत्यादिक बहु रीत । कालपरीक्षाकी सहु, जाणो गुरुगम मित ॥ ३७० ॥ अवसर निकट मरणतणो, जब जाणे बुधलोय । .. तब विशेष साधन करे, सावधान अति होय ॥३७१॥ धर्म अर्थ रु काम शिव, साधन जगमें चार । व्यवहारे व्यवहार लख, निहचे निज गुण धार॥३७२॥