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रवि राहु कुज तीसरो, शनि चतुर्थ वखाण || पंच तंत्र के भान घर, स्वामी अनुक्रम जाण || २४७||
बुध पृथ्वी जलको राशि, शुक्र अग्निपति मित । वायु गुरु सुर चंदमें, तत्र स्वाम इण रीत ॥ २४८ ॥ स्वामी अपणो आपणो, अपणे घरके मांहि । शुभ फलदायक जाणजो, यामें संशय नांहि ॥ २४९॥
जय तुष्टि पुष्टि रति, क्रीडा हास्य कहाय । एम अवस्था चंदनी, षट जल में थाय ॥ २५० ॥
ज्वर निद्रा परियास पुन, कंप चतुर्थी पिछाण । वेद अवस्था चंदनी, वायु अग्निमें जाण ।। २५१ ॥
प्रथम गतायु दूसरी, मृत्यु नभके संग । कही अवस्था चंदनी, द्वादश एम अभंग ॥ २५२ ॥
मधुर कषायल तिक्त पुन, खारा रस कहेवाय । नभ अव्यक्त रस पंचके, अनुक्रम दीये बताय ॥ २५३ ॥ जैसा रस आस्वादनी, होय प्रीत मनमांहि । तैसा तत्र पीछाणजो, शंका करजो नांहि ॥ २५४ ॥
श्रवण धनिष्टा रोहिणी, उत्तराषाढ अभीच । ज्येष्ठा अनुराधा सपत, श्रेष्ठ महीके बीच ॥ २५५ ॥