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नाडी तो तनमें धणी, पण चौवीश प्रधान । तिनमें नव फुनि ताउमें, तीन अधिक कर जान ॥ ११ ॥ इंगला पिंगला सुखमना, ये तीनुंके नाम । भिन्न भिन्न अब कहत हुं, ताके गुण अरु धाम ॥ १२॥भ्रकुटी चक्रशुं होत है, स्वासाको परकास । कनालके ढिग थइ, नामी करत निवास || १३ ॥ नाभीतें फुनि संचरत, इंगला पिंगला धाम । दक्षण दिश हे पिंगला, इंगला नाडी वाम ॥ १४ ॥ इण दोउंके मध्य में, सुखमम नाडी जोय । सुखमनके परकासमें, स्वर फुनि चालत दोय || १५ ||
डाबा स्वर जब चलत है, चंद उदय तब जान | जब स्वर चालत जीमणो, उदय होत तब भान ॥ १६ ॥
सौम्य काजकुं शुभ शशि, क्रूर कामकुं सूर । इणिविधि लख कारज करत, पामे सुख भरपूर ||१७||
दोउ स्वर सम संचरे, तब सुखमन पहिचान । तामें कोउ कारज करत, अवस होय कछु हान ॥ १८॥ चंद्र चलत कीजे सदा, थिर कारज स्वर भाल | चर कारज सूरज चलत, सिद्ध होय ततकाल ॥ १९॥