Book Title: Padmaparag
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Shantilal Mohanlal Shah

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक बार साधु महाराज प्रवचन देते थे और आसोजी नाम के एक श्रावक आगे बैठ कर आराम से नींद लेते थे। यह बात युवान साधु को अच्छी नहीं लगी। नींद एक प्रकार का प्रमाद है । साधु प्रमाद के दुश्मन होते हैं । साधु को यह बात अच्छी नहीं लगी । साधु आसोजी से कहते है-“आसोजी, सोते हो या. जागते हो ?" आसोजी कहते हैं-, “नहीं महाराज, जागता हूँ, ध्यान से सुन रहा हू । थोडी देर के बाद आसोजीने फिर समाधि लगा दी। साधू फिर आसोजी को कहते-. "क्यों आसोजी जागते हो ?" आसोजीने फिर वही जवाब दिया । थोडी देर के बाद फिर समाधि में चढ गये। अब साधु सोचते है कि अब आसोजी को बराबर क्रोस में पकडना चाहिजे । साधु आसोजी को कहते-, "क्यों आसोजी जीते हो?" आसोजीने कहा, 'नहीं नहीं महाराज ।” साधु कहे, "प्रवचन मुडदों के लिए नहीं जीवित व्यक्ति के लिए होता है। जीवन को एक बार जागृत करो और जागृति में साधना करो । जागृति में स्वयं की खोज करो । एक बार देवों की समा में परमात्माने कहा-,"मुझे ऐसी एकान्त जगह में ले चलो कि जहाँ मुझे आराम मिले । यहाँ इन्सानोंने तो मुझे हैरान कर रखा है । बार बार मेरे पास आकर भिकारी की तरह मांगते रहते हैं। देवोने सोचा परमात्मा को चंद्रलोक में लिया जाय । परमा For Private And Personal Use Only

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