Book Title: Padmaparag
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Shantilal Mohanlal Shah

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेम चौदह कॅरेट का नहीं है चोवीस कॅरेट का है। कुछ विलंब हुआ है लेकिन गुरु कृपा से आज बडे उत्साह से प्रवेश हुआ है। __ मेरी अंतर कामना है कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन मंदिर बने । वीतराग की विचार धारा से जीवन में जागृति आए । जागृति में की हुयी आराधना से सफलता मिलेगी। वर्गहीनता, वादशून्यता यह जैन धर्म की विशिष्टता है । श्वेतांबर या दिगंबर इन शब्दों में परमात्मा नहीं है। कोई भी वाद या पक्ष या युक्ति प्रयुक्ति में मुक्ति नहीं है । काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, मत्सर, माया, मान आदि कषायों से मुक्त होना ही मुक्ति है । वही सिद्धि पद है। धर्मग्रंथो से स्वयं का परिचय होत है। धर्म याने अंतःकरण की शुद्धता होती है। ____ महावीर की दृष्टि सापेक्ष है । विविध पर्याय से सत्यता जानने की सापेक्ष दृष्टि महावीर ने बतलाई । सापेक्ष दृष्टि से संघर्ष मिट जाता है-समन्वय हो जाता है । महावीर ने कहा-"पदार्थ एक है लेकिन परिचय अनेक हैं।" धर्मबिंदू ग्रंथ की रचना महान् जैनाचार्य श्रीमद् हरिभद्रसूरीश्वरजी ने की है। इस में व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टि से संसार का और 'स्व' का परिचय दिया है । आप को पेकिंग नहीं अंदर का माल देखना चाहिए । बड़े For Private And Personal Use Only

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