Book Title: Padmaparag
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Shantilal Mohanlal Shah

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मा का दर्शन अलौकिक होता है । उस से दारिद्रय चला जाता हैं । संसार के पापसे पीछे हटने के लिए प्रतिक्रमण किया जाता है। आपने कभी सोचा है कि मैं कौन हुँ । तुम खुद में खुद के शत्रू हो । संसार में आप कर्म करते हो । इस कर्म Reverse जाना इस का अर्थ - प्रतिक्रमण - याने पाप से पीछे हटना । खुदा शब्द का अर्थ क्या है ? आपने कभी अर्थ जानने की कोशिश की है ? खुदा याने खुद में आ जा । जगत् को छोड के स्वयं मे आजा | पहले स्वयं का परिचय करलो हम जगत् को जानने का प्रयास करते हैं, लेकिन खुद को भूल जाते हैं । जगत् के लिए हमारे पास वक्त है लेकिन स्वयं के लिए फुरसत नहीं है । आत्मा स्वयं कर्म करती है और कर्म के परिणाम स्वयं को ही भोगने पड़ते है । जब तक अज्ञान रूपी अंधःकार में भटकते रहोंगे । इस अवस्था में कर्म तुम को नचावेगा । नर्तकी जैसे तुम नाचोगे और इस की दोरी कर्म के हाथ में होगी । नर्तकी शब्द को उंधा करो । 'कीर्तन' बन जाता है । जब से तुम्हारे जीवन में कीर्तन आयेगा, तब तुम कर्म को नचाओगे । For Private And Personal Use Only

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