Book Title: Padmaparag
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Shantilal Mohanlal Shah

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस जगत् में आये हो । कोई आजाद नहीं है। पेट के लिए जगत की गुलाणी करनी पड़ती हैं । भरा हुआ पेट नशा उत्पन्न करता है। कर्म आत्मा का शत्रु है। आप के घर में बैठा हुआ है । एक दिन उपवास करोगे, चार आहोर का त्याग करोगे तो दूसरे दिन कर्म आप का कान पकडेगा और कल के व्याज सहित आप से वसूल करेगा । रबडी, हलवा, दूध, सब चीजे पारणा में वसूल करेगा । कर्म भयंकर डाकू है। शरीर आत्मा का बन्धन है । शरीर रोज आत्मा का पूण्य लूटता है । आप कुछ भी नही कर सकते हो। संसार उबलता हुवा तपेला है। 6 For Private And Personal Use Only

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