Book Title: Padmaparag
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Shantilal Mohanlal Shah

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वभाव, सदियों से चलते आये हुए हमारे बुरे संस्कार; पुरुषार्थ के बिना नहीं छूटेंगे। जगत् और जात का वजन ले के हम ऊपर नहीं जा सकते। ऊपर जाना हैं तो हमें भार मुक्त बनना चाहिए। आप अरोप्लेन से सफर करते हो । अरोप्लेन के सफर में कितना किलो लगेज साथ में लेना इसका प्रमाण होता है । दस या पंदर किलो से जादा लगेज आप नहीं ले सकते । सफर अच्छी तरह, दुर्घटना रहीत, सुरक्षित हो जाय इसके लिए यह बंधन रखा है । दो तीन हजार फूट ऊँचाइ से जाने के लिए हमें लगेज का बंधन स्वीकारना पडता है। हमें तो मोक्ष को जाना है। कितनी ऊँचाइ पर जाना है सोचलो । तो फिर हमें भार मुक्त होना पडेगा। परमोत्मा कहते है, "आप सोचो कि मैं कौन हूँ । स्वयं के चिंतन में स्वयं को एकाग्र करो। नाम, मकान सब उधार है। कोई व्यक्ति बंधन को चाहता नहीं । सब कहते मुझे आजादी चाहिए । व्रत, और नियम का बन्धन हमें नहीं चाहिए । आप को जॅचे या न ऊंचे आप को कई बार बन्धन स्वीकारना पडता है। जीवन एक लाचारी है । कर्म के कैदी बन कर For Private And Personal Use Only

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