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है, दीजिये ।
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मालवीयजी ने कहा - "काशी हिंदू विश्वविद्यालय के लिए ।"
नवाब ने पूछा, "क्या चाहिओ ?"
मालवीयजी ने कहा,
"
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आप को प्रेम से जो भी देना
नवाब ने पाँव का जोड़ा निकाला और मालवीयजी की तरक फेंक दीया | इतना अपमान हुआ लेकिन मालवीयजी शांत रहे । मालवीयजी ने नवाब को धन्यवाद दिया और जूता ले के चले गये ।
शाम को विराट जनसभा हुआ । मालवीयजो उस सभा में गये । सभा में मालवीयजी ने कहा - " मैं रांपूर के नवाब को धन्यवाद देता हूँ । मुझे कहने में बहुत दुःख होता है कि नवाब साहब के पास चंदा देने के लिए कुछ भी नहीं रहा था । फिरभी आनंद की एक बात है कि नवाबसाहेब ने मुझे दक्षिणा में एक जूता दिया है। मेरे जीवन की यह एक ऐतिहासिक बात है ! इस जूते को मैं हिफाजत से म्युझियम में रखूंगा और इस जूते का अब नीलाम किया जायेगा ।
नवाब का निजि सचीव सभा में था । उस ने यह बात सुनी और दौडते नवा के पास गया और कहा - "साहब आप के जूते का नीलाम चल रहा हैं। सच पूछो तो यह नीलाम जूते का नहीं, अपनी इज्जत का नीलाम चल रहा है। किसी भी हालत में
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