Book Title: Padmaparag
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Shantilal Mohanlal Shah

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किसी के प्रति दुर्भाव मत रखो । “आत्मवत् सर्व भूतेषु ऐसी भावना मन में रखनेवाला महान पंडीत बनता है। आत्मा से मात्मा का परिचय होता है । बम्बई में एक परिवार था । परिवार का प्रमुख, वृद्ध हो गया था । व्यापार की चोपडी वृद्ध हमेशा अपने पास रखता था । बच्चों को कुछ भी मालूम नहीं था । लेन देन कितनी है ? भांडवल कितना है ! इस की कोई भी जानकारी बच्चों को नहीं थी। वृद्ध एक किसी प्रसंग के निमित्त से अपने गांव गया। वहां वृद्ध को हार्ट अटेक आया । वाचा बंद हो गयो। शरीर को लकवा हो गया। बच्चो को खबर पडी। सब बच्चे दौडके अपने गांव आये । वृद्ध पिता की चिंता उनको नहीं थी। उस के साथ संपत्ति चली न जाय इस की चिंता थी। वृद्ध दरवाजे के पास पलंग पर पड़ा था। एक दिन दरवाजे की तरफ इशारा कर रहा था, लेकिन कुछ नहीं बोल सकता था। बच्चे सोचते है कि पिताजी कुछ बोलना चाहते है। चोपडा और संपत्ति की जगह बताना चाहते है। किसी भी हालत में कुछ दवा दे के कुछ मिनिट उन को बोलते करना चाहिजे । एक वैद्य के पास गये । वैद्य के पास संजिवनी औषधि मूली थी। वैद्य ने पांच सौ रूपिया फीस बतलाई । बच्चे सोचते है कुछ बात नहीं । नफे के हिसाब से कुछ भी घाटे का सौदा नहीं है। वैद्य ने पैसा लेकर औषधि बना लिया। उसने कहा “ औषध वृद्ध के जीभ को For Private And Personal Use Only

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