SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra है, दीजिये । www.kobatirth.org १९ मालवीयजी ने कहा - "काशी हिंदू विश्वविद्यालय के लिए ।" नवाब ने पूछा, "क्या चाहिओ ?" मालवीयजी ने कहा, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 46 आप को प्रेम से जो भी देना नवाब ने पाँव का जोड़ा निकाला और मालवीयजी की तरक फेंक दीया | इतना अपमान हुआ लेकिन मालवीयजी शांत रहे । मालवीयजी ने नवाब को धन्यवाद दिया और जूता ले के चले गये । शाम को विराट जनसभा हुआ । मालवीयजो उस सभा में गये । सभा में मालवीयजी ने कहा - " मैं रांपूर के नवाब को धन्यवाद देता हूँ । मुझे कहने में बहुत दुःख होता है कि नवाब साहब के पास चंदा देने के लिए कुछ भी नहीं रहा था । फिरभी आनंद की एक बात है कि नवाबसाहेब ने मुझे दक्षिणा में एक जूता दिया है। मेरे जीवन की यह एक ऐतिहासिक बात है ! इस जूते को मैं हिफाजत से म्युझियम में रखूंगा और इस जूते का अब नीलाम किया जायेगा । नवाब का निजि सचीव सभा में था । उस ने यह बात सुनी और दौडते नवा के पास गया और कहा - "साहब आप के जूते का नीलाम चल रहा हैं। सच पूछो तो यह नीलाम जूते का नहीं, अपनी इज्जत का नीलाम चल रहा है। किसी भी हालत में For Private And Personal Use Only
SR No.008727
Book TitlePadmaparag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherShantilal Mohanlal Shah
Publication Year1979
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy