Book Title: Padmaparag
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Shantilal Mohanlal Shah

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४ परमात्मा के दरबार में तो हमें समर्पण की भावना से जाना है । समर्पण की भावनासे साधना सुगंधमय बनती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " बहार लडे वह सैतान । अंदरथी लडे वह अरिहंत || " जीवन मृत्यु के वर्तुळ पर उपस्थित है । मृत्यु को कोई भी रोक नहीं सकता । मृत्यु हर घडी नजदीक आ रही है । जागृत अवस्था मे जीवन की पूर्णता प्राप्त करो । प्रमाद मृत्यु का दूसरा नाम है । का बन्धन | मोटार गाडी से सफर करते हो तो स्टेरींग घुमाने से मोटार की दिशा बदलती है । मन के स्टेरींगपर भी आप का नियंत्रण रखो । अंतरसे ही हमें परिवर्तन करना है । जीवन की सुंदर व्यवस्था के लिए ही यम, नियम, बंधन है । बंधन कहाँ नहीं है ?" नवमास हम पेट में रहे वह पण बंधन | जन्म के बाद पांच बरस माँ की नजर कैद में रहे वह भी बन्धन । पांच बरस से पचीस बरस तक पिता की कस्टडी में रहे - वह भी बन्धन | पचीस बरस के बाद हवाला दिया जाता है - वहाँ भी पत्नी For Private And Personal Use Only

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