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परमात्मा के दरबार में तो हमें समर्पण की भावना से जाना है । समर्पण की भावनासे साधना सुगंधमय बनती है ।
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" बहार लडे वह सैतान । अंदरथी लडे वह अरिहंत || "
जीवन मृत्यु के वर्तुळ पर उपस्थित है । मृत्यु को कोई भी रोक नहीं सकता । मृत्यु हर घडी नजदीक आ रही है । जागृत अवस्था मे जीवन की पूर्णता प्राप्त करो । प्रमाद मृत्यु का दूसरा नाम है ।
का बन्धन |
मोटार गाडी से सफर करते हो तो स्टेरींग घुमाने से मोटार की दिशा बदलती है । मन के स्टेरींगपर भी आप का नियंत्रण रखो । अंतरसे ही हमें परिवर्तन करना है ।
जीवन की सुंदर व्यवस्था के लिए ही यम, नियम, बंधन है । बंधन कहाँ नहीं है ?"
नवमास हम पेट में रहे वह पण बंधन |
जन्म के बाद पांच बरस माँ की नजर कैद में रहे वह भी बन्धन ।
पांच बरस से पचीस बरस तक पिता की कस्टडी में रहे - वह भी बन्धन |
पचीस बरस के बाद हवाला दिया जाता है - वहाँ भी पत्नी
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