Book Title: Padmaparag
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Shantilal Mohanlal Shah

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुख अगर परमात्मा को भूला देता है तो वह सुख किस काम का ? उस दुःख का मैं स्वागत करता हूँ कि जो बार बार मुझे प्रभु का स्मरण कराता है ।। विचार में वीतराग का चिंतन चाहिये । परमात्मा ने कहा"तुम जगत् के बंधन से मुक्त बनो । जगत् राग और द्वेष के बंधन में है । वहाँ आत्मिक गुणों का बलीदान दिया जाता है । धर्म की हत्या होती है। रवींद्रनाथ टागोर परमात्मा से प्रार्थना करते है और कहते है-'हे परमात्मन् भिखारी बन कर मैं तेरे द्वार नहीं आया हूँ। जगत् से कायर बन कर मैं नहीं आया हूँ । निष्काम भावना से मैं आप के पास आया हूँ। मेरे किये हुये कर्म से मेरे ऊपर कोई भी आफत आये, दुःख आये, कष्ट आये, मौत आओ, सब को सहन करने की शक्ति तू मुझे दे यही मेरी कामना है।" अगर आप ऐसी विशुद्ध भावना लेकर मंदिर में जाओंगे तो आत्मिक सुप्त गुण जागृत बनेंगे । लेकिन आप तो हमेशां पर-. मात्मा के पास अपनी समस्यायें ले कर जाते हो । हमेशा डबल रोल से काम करते हैं। हम प्रभु से प्रार्थना करते है और कहते है कि "शांतिनाथ प्रभु शाता करो। और मन में याचना करते-"गोळ, घी, कपास महेंगा करो। For Private And Personal Use Only

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