Book Title: Padarth Prakash 27 Navkar Stava
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 61
________________ भङ्गप्रस्तारकरणम् 12 13 14 15 14523 41523 15423 51423 45123 54123 24513 42513 25413 52413 45213 54213 13452 31452 14352 41352 34152 43152 13542 31542 15342 51342 35142 53142 14532 41532 15432 51432 45132 54132 16 17 18 19 20 34512 43512 35412 53412 45312 54312 23451 32451 24351 42351 34251 43251 23541 32541 25341 52341 35241 53241 24531 42531 25431 52431 45231 54231 34521 43521 35421 53421 45321 54321 अथ प्रस्तारमाह - आणुपुब्विभंग हिट्ठा जिटुं, ठविय अग्गओ उवरिं सरिसं / पुव्वि जिट्ठाइ कमा, सेसे मुत्तुं समयभेयं // 7 // व्याख्या - आनुपूर्वीभङ्गस्य पूर्वन्यस्तस्योपलक्षणत्वादनानुपूर्वीभङ्गस्याऽपि पूर्वन्यस्तस्याऽधस्तात् द्वितीयपङ्क्तावित्यर्थः, ज्येष्ठं सर्वप्रथमं अङ्कं स्थापय इति क्रिया सर्वत्र योज्या / तथाऽग्रत उपरीति उपरितनपङ्क्तिसदृशं अङ्कराशिमितिगम्यं स्थापय / तथा पूर्वमिति यत्र ज्येष्ठः स्थापितस्ततः पूर्वभागे पश्चाद्भाग इत्यर्थः ज्येष्ठानुज्येष्ठादिक्रमात्

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