Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 11
________________ ६ ६ वृत्तिके मंगलकी अन्य मंगलले सुलना । नमस्कारवारकी व्याया वृतिके प्रारंभिक कोंकोंकी तुलना । आदिवाक्यके विषय में तुछारम विवेचन | आदिवाक्य कौनसा प्रमाण है ? अर्थकी हिताहितकारिता सापेक्ष है। उपेक्षणीयार्थ खात मतभेद लक्ष्य और लक्षणमें कीन कब अनुवाद है ? इस विषय में नानामत | आत्मभूत और अनात्मभूत लक्षणकी चर्चा ज्ञानपरका व्याव क्या है? संयोगके विषयमें दार्शनिकों नामा मतवादका निरूपण । विषयानुक्रमणिका । का प्रयोजन । शक्तिके विषय में दार्शनिकोंके मतभेदों का वर्णन | अष्टकादि वेदकर्ता भर ईश्वरकारणवाद | Jain Education International earth विषय में दार्शनिकोंके तमेोंकी वर्णना १४ १२६ १२७ १२८ १२९ १३४ १३५ १३५ १३६ निकर्ष प्रामाण्यका विचार । समवायके विषय में नाना प्रकारके मयका निदर्शन । सामग्रीप्रमाणवाद दो प्रकारका है। प्रामाण्य की चर्चा आध्यात्मिक और व्यावहारिक दृष्टिका निरूपण । १४६ प्रामाण्यके नियामकतयोंके विषय में नाना वादका प्रदर्शन । क्रियाकारकव्यपदेशकी कल्पिता । आत्मव्यापारको प्रमाण कौन • मानता है ? सुखदुःखके स्वरूपविषयक माना मतवाद । स्वतः परतः प्रामाण्य । मिथ्याज्ञान (पति) के विषय में दार्शनिकोंके नाना मतवादका तुलनात्मक वर्णन | 'गजनिकरुपायते' के विषय में संक्षिप्त मोब 114 १३७ १३९ १४० १४२ १४६ ६४८ १५२ १५३ १५६ १५६ १५७ १७३ १७४ १७६ १८७ १९० १९९ पृष्ठ २०० २०२ २०३ चार्वाक दर्शनका संक्षिप्त इतिहास। २०३ जैनसंमत चैतन्यद्रव्य और बौद्धसंमत चित्तसंततिकी तुलना । २०६ २०८ अवयविग्रह | पुखावते । अनुमानमामाण्य सर्वज्ञवाद । प्रमाणसं लव और प्रमाणविलवादके विषय में जैन-बौद्धमन्तब्यका विवेचन | प्रमाणमेके नियामकतश्वके विषय में दार्शनिकों के मतका विवेचन | उपमानके विषय में मतभेदोंका निदर्शन । सायका विचार । २१०. २१७ २२० २२७ १२८ गवयालम्भन । यानुपलब्धि और मइयापक डिजका विवेक । बोददिले प्राह्ममाहकभाव प्रत्यक्ष क्षण वैद्यका विवेचन अस्पष्टदर्शन व है क्या ? प्रत्यक्ष के विभागके विषय में माना मतवाद । मोहव्यवाद। For Private & Personal Use Only २३१ २३५ २३७ २४० २४१ २४४ स्मृत्यादिको मागसमक्ष माननेवाले अकलंक से दूसरोंका मतभेद । २४४ प्रातिभके विषय में दार्शनिकोंके ममेद २०५ स्वमविज्ञानविचार | २४७ संवेदन मानस प्रत्यक्ष है ऐसा शायाचार्यका मत । सामान्यका बिभिदानिकी ि मुख्तारक विवेचन। अनेकान्तके धर्म कीर्तिकृत खण्डनका १४८ १५० खण्डन 1 फलविषयक विवेचनाका मतभेद । २६४ सोना किसमता कारवादका निरूपण १६५ शायाचार्य और अन्य जैनाचार्योंमें प्रमाणमेवोंके विषय ममेद " १६० www.jainelibrary.org

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