Book Title: Nyayamanjari Part 02
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute
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अस्मा तोरिद अहंप्रत्ययगम्य अहं सुखीति महरहब्रह्म अहेतुफलभावे महो बत वराको
580 268 276 452 324 450
588 328 336
आने हि चक्षुषा आयात्यपि न त आर्ष धर्मोपदेश अविनाशकद्भाव आस्तां वा प्रत्यभि आस्तां विधिपदे आस्तामेवैष आहारपरिणाम आ ! ज्ञात युक्ति आभासता वचन आभासभेद
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-
आ
345 285 323 543 543
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210 295 449 537
89 .66 551 122 345 425 556 446 276 267
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आकांक्षादि आकांक्षादीनि आकारद्वय आकाशातिशयो आख्यातात् साध्यता आख्यातानां तु आगमरत्वेष आज्ञा हि नाम - आतिवाहिक ' . अत्रमाने विज आत्मने चत आत्मन्यग्नीन् आत्मानमात्मना . आस्मैवत्वस्ति आद्यमेव हि आदृतमस्खलित आधाराधेय आधारोधिकरणम् भानन्त्यव्यभि. मानुषङ्गिकानि मान्तरं वासनारुप आपः पवित्र
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इच्छाद्वेष प्रयत्नादि इतरे चप्यसाधुत्व इतिकर्तव्यतांशे इति कबलने इतिकर्तव्यता ज्ञेया इतिकर्तव्यता हीष्टा इति चर्मपिनद्ध इति निपुणधिया इति निपुणमतियों इति प्रमाणत्व इति प्रमाणानि इति विततया इति वितनुतः इतीद व्याख्याते इत्यक्षपादामि इत्यादिदूषणौदार्य इत्थं च (चारी)
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