Book Title: Nyayamanjari Part 02
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute
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140 542 550 118
फलवद्व्यवहार फलस्य वस्तु फलस्यैवेष्य
.
540
76 134
450 51
67
412
402
13 .292
343
16
46
प्रयोजनं सूत्र प्रयोजनमतो प्रवर्तते नैव प्रवृद्धतर प्रसारितमुखो प्रसेत्स्यतीति प्रहाराहार प्रागभावदशा प्रागुक्तेति प्राग्दर्शिता नु प्राणादि मारुता प्राणवृत्तिमति प्राणस्य क्षुत्पिपासे प्राणिकर्म प्राधान्ययोगा प्राप्ते शरीर प्राप्तोदारवर प्रामाण्य च प्रामाण्ये सवि प्रायः सर्वत्र प्रीतियथा प्रेरकत्वं च प्रेरकत्वं फल प्रेयणैव सता
296 293 . 155 431 325 140 393 718 358 47 91 449 130 123 130
बन्धनिमित्त मन बहिस्थमिव बहूनामिन्द्रियार्णा बालो माणवको बाह्यार्थविषय बाझेनवार्थ बीज पदार्थ बुद्धिर्वान्यं वाचकं. बोधोनुमाना ब्रह्मचारी भूत्वा ब्राह्मणान् भोज ब्राह्मणेन सुरा ब्रह्मदर्शन
51.8 143 183 559 446 639 634 469
भग्ना भवन्ति भवता निग्रह भवतोऽनभि भवत्युत्पाटि भवन्तु भवदा । भवमरुभवैः भयं नाशयते भवत्यारोग्य भविष्यत्यय भवेदा नु
542. 714 210 379 201 408 122 123
फणिनः किल फलं तव फल प्रत्यक्ष फलं भवतु प.ल्मसात्
346 •297 124 118 344
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